दोस्तों आज हम एक आजाद भारत में सांस लेते हैं क्योंकि अंग्रेजों से हमें 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली थी और दोस्तों देश को आजाद कराने के लिए ना जाने कितने ही लोगों ने अपना जीवन तक न्योछावर कर दिया था। हालांकि यहां भी आजादी के लिए लड़ने वाले खास कर दो अलग-अलग विचारधाराओं में बटे हुए थे जिनमें से एक तरफ तो वो लोग थे जो कि आजादी को अपनी ताकत के दम पर छीन ना चाहते थे तो वहीं कुछ लोग शांति पूर्वक अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए आज़ादी हासिल करना चाहते थे और दोस्तों इन्ही अहिंसकवादी लोगों में से एक थे राष्ट्रपिता कहे जाने वाली मोहनदास करमचंद गांधी जिनको हम सभी आमतौर पर महात्मा गांधी के नाम से जानते हैं और दोस्तों गांधीजी भारतीय इतिहास के वह व्यक्ति हैं जिन्होंने देश हित के लिए अंतिम सांस तक लड़ाई की है और उन्हें की तरह ही हजारों वीरों की वजह से हमारा देश 1947 में आजाद हो सका था। तो दोस्तों इस वीडियो में हम भारत के सबसे लोकप्रिय लोगों में से महात्मा गांधी के जीवन के बारे में जानेंगे कि किस तरह से आखिर अहिंसा के मार्ग पर चलने वाले गांधी जी ने अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया था।
तो दोस्तों इस कहानी की शुरुआत होती है 2 अक्टूबर 1869 से जब गुजरात के पोरबंदर शहर में महात्मा गांधी जी का जन्म हुआ। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और मां का नाम पुतलीबाई था। हालांकि भले ही गांधीजी पोरबंदर शहर में पैदा हुए थे लेकिन जन्म के कुछ साल बाद ही उनका पूरा परिवार राजकोट में रहने लगा और फिर गांधीजी के शुरुआती पढ़ाई भी वहीं से हुई थी और दोस्तों 9 साल की उम्र में पहली बार स्कूल जाने वाले गांधीजी शुरू से ही काफी शर्मीले थे और वह बचपन से ही किताबों को अपना दोस्त मानते थे और फिर आगे चलकर महज 13 साल की उम्र में उनकी शादी उनसे 1 साल बड़ी लड़की कस्तूरबा से हो गई। दरअसल भारत में उस समय शादियां काफी छोटी उम्र में ही हो जाया करती थी। हालांकि आगे चलकर जब गांधीजी करीब 15 साल के थे तब उनके पिता का निधन हो गया और फिर पिता के निधन के 1 साल बाद गांधीजी की पहली संतान भी हुई लेकिन दुर्भाग्य से जन्म के कुछ समय बाद ही बच्चे की मृत्यु हो गई थी और इस तरह से एक गांधीजी के ऊपर मानव दुखों का पहाड़ टूट पड़ा लेकिन कठिन परिस्थितियों में भी गांधीजी ने खुद को संभाला और फिर 1887 अहमदाबाद से उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की और फिर आगे चलकर कॉलेज की पढ़ाई करने के बाद मावजी दवे जोशी जी के सलाह पर गांधीजी ने लंदन जाकर लॉ की पढ़ाई की हालांकि 1886 में गांधीजी दूसरी बार पिता बने और इसी वजह से उनकी मां नहीं चाहती थी कि वह अपने परिवार को छोड़कर कहीं दूर जाए लेकिन कैसे भी करके उन्होंने अपनी मां को मनाया।
फिर 4 सितंबर 1888 को लंदन पढ़ाई के लिए वह चले गए और 1891 वह पढ़ाई पूरी कर के अपने वतन भारत वापस आ गए। हालांकि विदेश में पढ़ाई करने के बावजूद भी भारत आने पर उन्हें नौकरी के लिए काफी भागा दौड़ी करनी पड़ी और फिर 1893 में दादा अब्दुल्लाह एंड कंपनी नाम के एक भारतीय कंपनी में उन्हें नौकरी मिली। हालांकि इस नौकरी के लिए उन्हें साउथ अफ्रीका जाना पड़ा था और दोस्तों साउथ अफ्रीका में बिताए गए साल गांधीजी के जीवन के सबसे कठिन समय में से एक था क्योंकि वहां पर उन्हें भेदभाव का काफी सामना करना पड़ा। हालांकि इन ही भेदभाव न हीं उन्हें इतना सक्षम बना दिया कि वह लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार रहते थे और दोस्तों यूं तो गांधीजी को सिर्फ 1 साल के लिए ही साउथ अफ्रीका भेजा गया था लेकिन वहां रह रहे भारतीयों और आम लोगों के हक के लिए अगले 20 साल तक लड़ते रहे और इसी दौरान उन्होंने नटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की थी और दोस्तों अफ्रीका में रहते हुए गांधी जी ने एक निडर सिविल राइट्स एक्टिविस्ट के रूप में खुद की पहचान बना ली थी।
फिर गोपाल कृष्ण गोखले जो कि इंडियन नेशनल कांग्रेस के एक सीनियर लीडर थे। उन्होंने गांधी जी से भारत वापस आकर अपने देश को आजाद करवाने के लिए लोगों की मदद करने की बात कही और फिर इस तरह से 1915 में गांधी जी भारत वापस आ गए और फिर यहां आकर उन्होंने इंडियन नेशनल कांग्रेस ज्वाइन करके भारत की आजादी में अपना सहयोग शुरू कर दिया और दोस्तों भारत के अंदर महज कुछ सालों में ही वह लोगों के चहेते बन गए और फिर अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए उन्होंने भारत के लोगों में एकता की गांठ बांध दी। यहां तक कि उन्होंने अलग-अलग धर्म और जाति के लोगों को भी एक साथ लाने का काम किया और दोस्तों 1922 में गांधी जी ने असहयोग आंदोलन चलाया जिसके तहत अंग्रेजी चीजों का इस्तेमाल भारतीय लोगों ने लगभग बंद ही कर दिया था और फिर जब यह आंदोलन काफी सफल साबित हो रहा था। तब महात्मा गांधी को 1922 में 2 सालों के लिए जेल भेज दिया गया। हालांकि गांधी जी के जेल जाने पर लोगों के अंदर और भी गुस्सा आ गया। जिसकी वजह से पूरा भारत अब एक होने लगा था और फिर इसी कड़ी में ही मार्च 1930 में दांडी यात्रा को भी अंजाम दिया गया। जिसमें की 60000 लोगों की गिरफ्तारी हुई और फिर इसी तरह से ही आगे भी गांधी जी के नेतृत्व में क्विट इंडिया मूवमेंट की तरह ही कई और भी आंदोलनों को अंजाम दिया जाता रहा और इस दौरान गांधीजी की बहुत बार गिरफ्तारी भी हुई।
लेकिन दोस्तों महात्मा गांधी के द्वारा लगाई गई चिंगारी अब लोगों के भीतर आग बंद कर जलने लगी थी और यही वजह थी कि गांधीजी के साथ-साथ बाकी क्रांतिकारियों ने मिलकर 1947 में देश को आजाद कराने में अहम रोल अदा किया और फिर 15 अगस्त 1947 को हमारा भारत देश आजाद हो गया। हालांकि अभी देश के अंदर आजादी का जश्न चल ही रहा था तभी 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी और फिर इस घटना ने ना सिर्फ देश में बल्कि पूरी दुनिया में ही शोक फैला दिया। हालांकि 15 नवंबर 1949 को गांधीजी के हत्यारे नाथूराम को फांसी दे दी गई थी। परंतु अंत में बस मैं यही कहना चाहता हूं कि जब तक गांधी जी जीवित रहे तब तक अहिंसा को ही हर चीज का जवाब मानते रहें और इसी सिद्धांत के दम पर ही उन्होंने अपनी पहचान बनाई थी। हालांकि भले ही वह हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी सीख और उनके सिद्धांत आज भी पूरी दुनिया मानती है।
उम्मीद करते हैं कि गांधीजी की यह बायोग्राफी आपको जरूर ही पसंद आई होगी आपका बहुमूल्य समय देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !