अपने कैरियर की शुरुवात इन्होने पाटनी कम्प्यूटर सिस्टम्स (PCS) , पुणे से की। PCS मे काम करते हुए नारायणमूर्ति ने कई उपलब्धियां हासिल की । पूना में ही इनकी मुलाकात सुधा से हुई जो उस समय टाटा में काम करतीं थी तथा आज इनकी धर्मपत्नी है। नारायण मूर्ति अपनी खुद् की कंपनी शुरू करना चाहते थे लेकिन ऊंची सोच वाले मूर्तिजी के पास पैसे की तंगी थी।बाद में अपनी पत्नी से १०,००० रुपये उधार लेकर हिस्से के शेयर के पैसे लगाकर अपने ६ और साथियों के साथ १९८१ मे नारायणमूर्ति ने इन्फ़ोसिस कम्पनी की स्थापना की।मुम्बई के एक अपार्टमेंट में शुरू हुयी क्म्पनी की प्रगति की कहानी आज दुनिया जानती है। सभी साथियों की कड़ी मेहनत रंग लाई और १९९१ मे इन्फ़ोसिस पब्लिक लिमिटेड कम्पनी मे तब्दील हुई। १९९९ मे कम्पनी को उत्कृष्टा और गुणवत्ता का प्रतीक SEI-CMM हासिल किया। १९९९ मे वो स्वर्णिम अवसर आया, और इन्फोसिस ने इतिहार रचा, जब कम्पनी के शेयर अमरीकी शेयर बाजार NASDAQ मे रजिस्टर हुए। इन्फोसिस ऐसा कर दिखाने वाली पहली भारतीय कम्पनी थी।
नारायणमूर्ति १९८१ से लेकर २००२ तक कम्पनी मुख्य कार्यकारी निदेशक रहे। २००२ मे उन्होने कमान अपने साथी नन्दन नीलेकनी को थमा दी, लेकिन फिर भी इन्फोसिस कम्पनी के साथ वे मार्गदर्शक के दौर पर जुड़े रहे। नारायणमूर्ति १९९२ से १९९४ तक नास्काम के भी अध्यक्ष रहे। बहुत कम लोग जानते हैं कि नारायणमूर्ति जेल की भी हवा खा चुके हैं। उन्हीं के शब्दों में:-
हम लोग १९७४ में बुल्गारिया में थे।एक ल़डकी मुझसे फ़्रेंच में बात करने लगी। ट्रेन में एक नौजवान इस बात से झुंझला गया क्योंकि वह उससे बात न करके मुझसे बात कर रही थी। अगली घटना यही हुयी कि मैं तीन दिन के लिये जेल में ठूंस दिया गया ।एक अजनबी धरती पर तीन दिन बहुत लम्बा समय होता है। पहले दिन के बाद ही हालत खराब होने लगती है यह सोचकर कि कभी निकलना भी हो पायेगा क्या !लेकिन मैंने कभी आशा नहीं छोडी।
नारायण मूर्ति को २००० में भारत सरकार द्वारा उनकी उपलब्धियों के लिये पद्मश्री पुरुस्कार प्रदान किया गया। इसके अलावा तकनीकी क्षेत्र में तमाम पुरस्कार समय-समय पर मिलते रहे।सन २००५ में नारायण मूर्ति को विश्व का आठवां सबसे बेहतरीन प्रबंधक चुना गया। इस सूची में शामिल अन्य नाम थे-बिल गेट्स,स्टीव जाब्स तथा वारेन वैफ़े ।
हालांकि नारायण मूर्ति आज अवकाश ग्रहण कर रहे हैं लेकिन वे इन्फ़ोसिस के मानद चेयरमैन बने रहेंगे । श्री नारायण मूर्ति ने असम्भव को सम्भव कर दिखाया। भारत के इतिहास मे नारायण मूर्ति का नाम हमेशा लिया जाएगा। भारत के ऐसे लाल को हमारा शत शत नमन। नारायण मूर्ति के दीर्घ ,सक्रिय,स्वस्थ जीवन के लिये मंगलकामनायें।
हर सफर का अपना मजा है
तीस साल पहले 1981 में छह मित्रों और केवल दस हजार रुपये की पूंजी से एन आर नारायण मूर्ति ने जिस इन्फोसिस कंपनी की स्थापना की थी, उसका कारोबार बीते साल करीब 30,000 करोड़ रुपये था। उन्होंने एक ऐसी कंपनी की नींव डाली, जिसे दुनिया की बेहतरीन कंपनियों में गिना जाता है। 33 देशों में सवा लाख से भी ज्यादा लोग उनके साथ काम करते हैं। उनकी कंपनी को सर्वश्रेष्ठ नियोक्ता सहित अनेक सम्मान मिल चुके हैं।
एक अरब डॉलर के कारोबार का आंकड़ा छूनेवाली यह पहली सॉफ्टवेयर कंपनी रही है। नारायण मूर्ति की तारीफ अमेरिकी राष्ट्रपति सहित अनेक दिग्गज कर चुके हैं। देश-विदेश में अनेक सम्मान पा चुके नारायण मूर्ति पहले पद्मश्री और फिर पद्म भूषण से नवाजे जा चुके हैं। दुनिया भर के आईटी क्षेत्र में भारत की छवि चमकाने वाले मूर्ति की सफलता के कुछ सूत्र :
अनुभव से सीखने का महत्व
आप कोई भी बात कैसे सीखते हैं? अपने खुद के अनुभव से या फिर किसी और से? आप कहां से और किससे सीखते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि आपने क्या सीखा और कैसे सीखा। अगर आप अपनी नाकामयाबी से सीखते हैं, तो यह आसान है। मगर सफलता से शिक्षा लेना आसान नहीं होता, क्योंकि हमारी हर कामयाबी हमारे कई पुराने फैसलों की पुष्टि करती है। अगर आप में नया सीखने की कला है, और आप जल्दी से नए विचार अपना लेते हैं, तभी सफल हो सकते हैं।
परिवर्तन को स्वीकारें
हमें सफल होने के लिए नए बदलावों को स्वीकारने की आदत होनी चाहिए। मैंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद किसी हाइड्रो पॉवर प्लांट में नौकरी की कल्पना की थी। पढ़ाई के दौरान एक वक्ता के भाषण ने मेरी जिंदगी बदल दी। उन्होंने कंप्यूटर और आईटी क्षेत्र को भविष्य बताया था। मैंने मैसूर में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। फिर आईआईटी कानपुर में पीजी किया। आईआईएम अहमदाबाद में चीफ सिस्टम्स प्रोग्रामर के नौकरी की। पेरिस में नौकरी की और पुणे में इन्फोसिस की स्थापना की और बंगलुरु में कंपनी का कारोबार बढ़ाया। जो जगह मुफीद लगे, वहीं काम में जुट जाओ।
संकट की घड़ी को समझें
कभी-कभी संकट में सौभाग्य नजर आता है। ऐसे में, धीरज न खोए
ं। आपकी कामयाबी इस बात में भी छिपी होती है कि संकट के वक्त आप कैसी प्रतिक्रिया देते हैं? इन्फोसिस की स्थापना हम सात लोगों ने की थी और मैं तथा मेरे सभी साथी चाहते थे कि हम यह कंपनी बेच दें, क्योंकि साल भर की मेहनत के हमें दस लाख डॉलर मिल रहे थे। यह मेरे लिए सौभाग्य नहीं, संकट था। मैं इस कंपनी का भविष्य जानता था। तब मैंने अपने साथियों को संभाला था और इन्फोसिस को बिकने से रोका।
संसाधनों से बड़ा जज्बा
इन्फोसिस से पांच साल पहले नारायण मूर्ति ने आईटी में देशी ग्राहकों को ध्यान में रखकर सफ्ट्रॉनिक्स नाम की कंपनी खोली थी, जो बंद कर देनी पड़ी। 2 जुलाई, 1981 को इन्फोसिस कंपनी रजिस्टर्ड हुई, लेकिन उस समय मूर्ति के पास कंप्यूटर तो दूर, टेलीफोन तक नहीं था। उन दिनों टेलीफोन के लिए लंबी लाइन लगती थी। जब इन्फोसिस अपना आईपीओ लेकर आई, तब बाजार से उसे अच्छा रेस्पांस नहीं मिला था। पहला इश्यू केवल एक रुपये के प्रीमियम पर यानी ग्यारह रुपये प्रति शेयर जारी हुआ था।
किसी एक के भरोसे मत रहो
1995 में इन्फोसिस के सामने एक बड़ा संकट तब पैदा हो गया था, जब एक विदेशी कंपनी ने उनकी सेवाओं का मोलभाव एकदम कम करने का फैसला किया। वह ग्राहक कंपनी इन्फोसिस को करीब 25 प्रतिशत बिजनेस देती थी। लेकिन अब जिस कीमत पर वह सेवा चाहती थी, वह बहुत ही कम थी। दूसरी तरफ उस ग्राहक को खोने का मतलब था कि अपना एक चौथाई बिजनेस खो देना। तभी तय किया गया कि बात चाहे टेक्नोलॉजी की हो या अप्लीकेशन एरिया की, कभी भी किसी एक पर निर्भर मत रहो। अपना कामकाज इतना फैला हो कि कोई भी आपको आदेश न दे सके।
आप केवल कस्टोडियन हैं
जो भी संपदा आपके पास है, वह केवल आपकी देखरेख के लिए है। आप उसके अभिरक्षक हैं। वह भी अस्थायी तौर पर। बस। यह न मानें कि वह सारी संपदा केवल आप ही भोगेंगे। किसी भी संपदा का असली आनंद आप तभी उठा सकते हैं, जब उसका उपभोग पूरा समाज करे। यदि आपने बहुत दौलत कमा भी ली और उसका मजा लेना चाहते हैं, तो उसे किसी के साथ शेयर करें। यही हमारा दर्शन है।
कुर्सी से न चिपके रहें
साठ साल के होते ही नारायण मूर्ति ने अपनी कंपनी के चेयरमैन का पद छोड़ दिया और नन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बन गए। आम तौर पर कर्मचारियों को तो साठ साल में रिटायर कर दिया जाता है, लेकिन डायरेक्टर अपने पद पर डटे रहते हैं। नारायण मूर्ति ने सभी को यह संदेश दिया कि अगर किसी भी कंपनी को लगातार आगे बढ़ाना है, तो उसमें नए खून की निर्णायक भूमिका रहनी चाहिए। क्योंकि नए विचार अपनाने में युवाओं को कोई हिचक नहीं होती।
मंजिल से ज्यादा मजा सफर में
जीवन में कोई भी लक्ष्य पा लेने में बहुत मजा आता है। लेकिन जीवन का असली मजा तो सफर जारी रखने में ही है। कभी भी जीवन में संतुष्ट होकर ना बैठ जाएं कि बस, बहुत हो चुका। जब आप एक मैच जीत जाते हैं, तो अगले मैच की तैयारी शुरू कर देते हैं। हर मैच जीतने की अपनी खुशी होती है और खेलने का अपना मजा है।